Autism spectrum disorder symptoms, causes, treatment
Autism spectrum disorder symptoms, causes, treatment
ऑटिज्म विकार की परिभाषा: हाल ही में लखनऊ में एक एएसपी की पत्नी ने आत्महत्या कर ली, जिसका वीडियो सीसीटीवी में कैद हो गया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया है। बताया जा रहा है कि महिला मानसिक तनाव में थी और उसने अपने 12 वर्षीय ऑटिज्म से पीड़ित बेटे को नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया। दंपति के बीच इस विषय पर अक्सर विवाद होते थे। पति के तानों से परेशान होकर उसने ऐसा कदम उठाया। इस घटना ने ऑटिज्म के बारे में चर्चा को बढ़ावा दिया है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की विशेषताएँ
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक न्यूरोलॉजिकल विकार है, जो मुख्य रूप से बच्चों में पाया जाता है। यह विकार बच्चों के विकास को प्रभावित करता है, जिससे उनके सोचने और व्यवहार करने की क्षमता में अंतर आता है। इसके लक्षण जीवनभर बने रह सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर पहचान और उपचार किया जाए, तो इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। अभिभावकों को भी धैर्य और समझदारी से पेश आना चाहिए।
ऑटिज्म के लक्षण
- सामाजिक संपर्क में कठिनाई, जैसे नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया न करना।
- 6 महीने की उम्र तक मुस्कान न करना या बातचीत पर प्रतिक्रिया न देना।
- आंखों में आंखें डालकर बात न करना।
- बोलने में देरी और सीमित शब्दों का उपयोग।
- एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना।
- तेज आवाज या रोशनी के प्रति संवेदनशीलता।
- सामाजिक संबंधों से दूरी बनाना।
ऑटिज्म के कारण
ऑटिज्म के कारणों का अभी तक पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसमें जेनेटिक फैक्टर, गर्भावस्था के दौरान संक्रमण और मस्तिष्क के विकास में गड़बड़ी शामिल हो सकते हैं। यदि परिवार में पहले से कोई व्यक्ति इस समस्या से ग्रसित है, तो अगली पीढ़ी में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऑटिज्म से जुड़ी समस्याएँ
- खिलाने में कठिनाई।
- नींद की समस्याएँ।
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएँ।
- मिर्गी।
- ध्यान की कमी/हाइपरएक्टिविटी विकार।
- अन्य मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ, जैसे ओसीडी, सिज़ोफ्रेनिया और बायपोलर डिसऑर्डर।
ऑटिज्म की पहचान कैसे करें?
ऑटिज्म की पहचान के लिए बच्चे के व्यवहार और विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिए चिकित्सक विभिन्न मनोवैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हैं:
- बाल रोग विशेषज्ञ द्वारा विकास की स्क्रीनिंग।
- स्पीच लैंग्वेज थैरेपिस्ट की सलाह।
- मानसिक विकास से जुड़े परीक्षण।
- व्यवहार आधारित अवलोकन।
ऑटिज्म का उपचार
ऑटिज्म का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन समय पर चिकित्सा और थेरेपी से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- स्पीच थैरेपी: बोलने में सहायता के लिए।
- ऑक्यूपेशनल थैरेपी: दैनिक गतिविधियों में सुधार के लिए।
- बिहेवियरल थैरेपी: दोहराए जाने वाले व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए।
- स्पेशल एजुकेशन प्रोग्राम: विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए शिक्षा।
भारत में ऑटिज्म के प्रति जागरूकता की कमी है, जिससे कई माता-पिता बच्चों के असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज कर देते हैं।
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